संहारक और पालक शिव(कविता) प्रतियोगिता हेतु20-Apr-2024
संहारक और पालक शिव प्रतियोगिता हेतु
सुख- समृद्धि यदि पाना है तो,शिव का भज लो नाम। विवेक, वैराग्य दोनों ही विराजें, भक्ति करो निष्काम।।
विवेक, वैराग्य दोनों ही, संपूर्णता में हैं समाविष्ट। शिव का नाम सदा जप बंदे, ये हैं हमारे ईष्ट ।।
अंतश्चेतना और दुर्गुण को, तू ना कभी पकड़ना। दुष्प्रवृत्तियों का संग त्यागकर, सद्वृत्ति में जकड़ना।।
सृजनहार तुम शिव को जानो, शिव ही है संहारक। शिव के लास्य से सृष्टि हँसती, ये हैं सबके तारक।।
तीजा नेत्र जो खुला प्रभु का, मचा दिए वो तांडव। असुर प्रवृत्तियांँ टिक ना पाएँ,चहुँओर विराजे खांडव।।
शिव ही शास्त्र और शिव संस्कृति हैं, शिव दोनों के रक्षक। कोई अनैतिक काज किये तो, शिव बन जाएंँगे भक्षक।।
प्रात- रात और शाम दुपहरी, शिव के नाम को जप लो। चित्त में जो है छाया अंँधेरा, दूर करो और तप लो।।
शिव के निशदिन जपने से ही, चेतनता है आती। समता,शुचिता और एकता चहुँ ओर फैलाती।।
ये तीनों गुण गह लिया जिसने, निर्माण किया संस्कृति का। उसका मन है शांत हो गया, है नाश किया विकृति का।।
साधना शाही,वाराणसी